कलिया !

कभी -कभी कोई शख्सियत या कोई घटना ऐसी होती है कि आप चाहे जितने लम्बे सफर पर निकल जाएं, दुनिया बदल लें- वह आपके अवचेतन पर चिपकी होती है । रह – रहकर आपको मथती है, झिंझोड़ती है और बार-बार आपको बेचैन करती है।

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5/8/20241 min read

कलिया वही है ! मेरी दोस्त जिसके साथ मैं आम के बगीचे में गोटी -गोटी खेलती थी।

जिन्दगी के इस चौथेपन में पहुंचने के बाद भी आज तक मैं बार-बार नवीं कक्षा में पढ़ती हुई उसी उम्र में वापस चली जाती हूँ । ईमानदारी से नजर दौड़ाती हूँ तो अपने हर एक कदम में कलिया को लिपटी पाती हूँ। हाँ, कलिया आज भी मेरे साथ है!

आचानक गाँव में एक दिन हल्ला होना शुरू हुआ। हाँ, मेरे अपने गाँव में । मैं नवीं में पढ़नेवाली एकदम नासमझ नहीं रह गई थी । सुना कि कलिया बिना ब्याहे कुँवारी माँ बन चुकी है । उसके घर गई। भीड़ जमा थी । कलिया का सुन्दर-सा बच्चा सबके लिए परेशानी का कारण था ।बिरादरी के लोगों के पास सिर्फ एक काम बच गया था । बिना कलिया से कुछ पूछे आपस में मशविरा करना ।और उन्होंने फैसला लिया कि बच्चे को मारकर कहीं फेंक दिया जाए। हालाँकि उसकी माँ बच्चे को बिना मारे कहीं और रखवा देने के पक्ष में थी।

कलिया कटघरे में खड़ा थी! मैंने कलिया के बच्चे को छुआ ।मुझे साफ याद है कि मैं तब भी रो पड़ी थी।

समाज का फैसला हुआ। और कलिया का नवजात बेटा मार डाला गया । उसे हाँड़ी में रखकर गाड़ दिया गया ।

कालिया बिलखती रह गई।

समाज के लिए कालिया दोषी थी । लेकिन किसी ने भी कलिया की आवाज को आवाज नहीं दिया कि तेरह बरस की कलिया को उसके मालिक ने अपने दालान में बुलाकर लगातार चीरा- फाड़ा था। एक भी आवाज उस ‘मालिक ‘ के खिलाफ नहीं उठी । कोई मुकदमा नहीं हुआ ।

कलिया कलपती रह गई।

Source: Awarenews24.com